विश्व भर में जलवायु परिवर्तन, महामारियों और आर्थिक अस्थिरता जैसे आपस में जुड़े संकटों के बीच, वर्तमान वैश्विक शासन प्रणाली, जिसमें संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसी संस्थाएँ शामिल हैं, अपनी प्रभावशीलता को लेकर आलोचना का सामना कर रही है। वैश्विक शासन मॉडल में सुधार की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो गई है।
📜 वर्तमान वैश्विक शासन प्रणाली
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संयुक्त राष्ट्र (UN): 
 1945 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र शांति बनाए रखने, मानवीय सहायता प्रदान करने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, यह प्रभावी रूप से लागू करने में संघर्ष करता है क्योंकि इसे शक्तिशाली कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है।
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ब्रेटनवुड्स संस्थाएँ: 
 विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को वैश्विक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन ये प्रायः विकासशील देशों के बजाय विकसित देशों के हितों का पक्ष लेते हैं।
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विश्व व्यापार संगठन (WTO): 
 WTO वैश्विक व्यापार को विनियमित करता है, लेकिन यह वैश्विक परिवर्तन के प्रति धीमा और पक्षपाती होने के लिए आलोचना का शिकार है।
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क्षेत्रीय गठबंधन: 
 यूरोपीय संघ (EU), ASEAN, BRICS, और G20 जैसी संगठन वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी इनका एकीकृत वैश्विक ढांचा नहीं है जो वैश्विक संकटों का समाधान कर सके।
🌱 वैश्विक शासन में सुधार की आवश्यकता
1. सीमा रहित चुनौतियाँ:
जलवायु परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) नियमन और महामारियों जैसी समस्याएँ एक समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। COVID-19 महामारी ने WHO और वैश्विक प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर किया, विशेष रूप से असमान वैक्सीन वितरण, जिसमें अफ्रीका जैसे देशों को पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत बाद में वैक्सीन प्राप्त हुई।
2. पुरानी संरचनाएँ:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना आधुनिक वैश्विक शक्ति संरचनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करती। भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे देशों को स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है, जबकि वे वैश्विक शांति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
3. अक्षमता और नौकरशाही:
धीमी निर्णय लेने की प्रक्रिया, जैसे म्यांमार में रोहिंग्या संकट के दौरान, संयुक्त राष्ट्र की सीमाओं को दिखाती है। नौकरशाही बाधाओं के कारण त्वरित कार्रवाई में असफलता होती है।
4. वैश्विक दक्षिण का हाशियाकरण:
विकासशील देशों को वैश्विक निर्णय-निर्माण संस्थाओं में सीमित प्रतिनिधित्व प्राप्त है। IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में, मतदान शक्ति पश्चिमी देशों के पक्ष में झुकी हुई है, और अमेरिका के पास महत्वपूर्ण निर्णयों पर वीटो शक्ति है।
5. स्थानीय-वैश्विक एकीकरण की आवश्यकता:
प्रभावी वैश्विक शासन के लिए मजबूत स्थानीय शासन संरचनाओं की आवश्यकता है। राष्ट्रीय संप्रभुता को वैश्विक सहयोग के साथ संतुलित करना जरूरी है ताकि वैश्विक संकटों को हल किया जा सके।
🔧 वैश्विक शासन सुधार के सामने चुनौतियाँ
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राष्ट्रीय संप्रभुता के संघर्ष: 
 देश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को शक्ति सौंपने के लिए तैयार नहीं हैं। चीन और रूस जैसे देशों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रभाव को बढ़ाने का विरोध किया है, जैसे कि वे अपनी आंतरिक नीतियों में हस्तक्षेप से बचना चाहते हैं (जैसे हांगकांग और यूक्रेन विवाद)।
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भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धाएँ: 
 अमेरिका, चीन, रूस और यूरोपीय संघ के बीच शक्ति संघर्ष वैश्विक स्थिरता को प्रभावित करता है और वैश्विक सहयोग को बाधित करता है। उदाहरण के लिए, US-चीन व्यापार युद्ध और रूस पर प्रतिबंध ने वैश्विक आर्थिक सहयोग को कठिन बना दिया है।
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प्रवर्तन तंत्र की कमी: 
 संयुक्त राष्ट्र के पास नीतियों को प्रभावी रूप से लागू करने का अधिकार नहीं है। उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर UN के प्रस्तावों को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सका, जिससे इस कमी को उजागर किया गया।
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आर्थिक और राजनीतिक असमानता: 
 विकासशील देशों को वैश्विक निर्णय-निर्माण में सीमित प्रभाव मिलता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीका का वैश्विक वित्तीय नीतियों में बहुत ही कम योगदान है, जबकि यह संसाधन-संपन्न है।
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संस्थाओं में सार्वजनिक अविश्वास: 
 बढ़ती राष्ट्रवाद और पॉपुलिज़्म के कारण वैश्विक संस्थाओं के प्रति समर्थन कम हो रहा है।
🚀 आगे का रास्ता
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सुरक्षा परिषद सुधार: 
 सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का विस्तार करने की आवश्यकता है, ताकि भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे देशों को भी स्थायी प्रतिनिधित्व मिल सके। G4 देशों (भारत, जर्मनी, जापान, ब्राजील) ने इस सुधार का समर्थन किया है, जो उनकी आर्थिक और राजनीतिक भूमिका को दर्शाता है।
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बहुपक्षीय संस्थाओं को सशक्त करना: 
 G20 जैसी संस्थाओं को और अधिक प्रभावी बनाना, निर्णय लेने की पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, G20 ने COVID-19 महामारी के दौरान वैश्विक आर्थिक राहत पैकेज के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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वैश्विक शासन मॉडल का परिवर्तन: 
 राष्ट्र-राज्य आधारित मॉडल से एक नई महासंयुक्त शासन प्रणाली की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय समाधानों के साथ वैश्विक समाधान एकीकृत हो सकें। नागरिकों द्वारा चलाए गए जलवायु परिवर्तन के अभियान, जैसे “Fridays for Future” आंदोलन, ने वैश्विक जलवायु नीतियों को प्रभावित किया है।
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लोक भागीदारी और विश्वास: 
 अधिक समावेशी शासन को बढ़ावा देना जरूरी है, जिसमें नागरिक समाज और स्थानीय समुदायों की अधिक भागीदारी हो। सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को जनता के साथ विश्वास स्थापित करने के प्रयास करने होंगे।
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तकनीकी समाधान: 
 प्रौद्योगिकी का उपयोग करके शासन को पारदर्शी और प्रभावी बनाना संभव है। उदाहरण के लिए, WHO द्वारा विकसित AI-आधारित महामारी ट्रैकिंग सिस्टम संकटों के त्वरित समाधान के लिए मददगार हो सकता है।
📝 निष्कर्ष
21वीं सदी में वैश्विक संकटों के समाधान के लिए एक नया शासन मॉडल आवश्यक है। वैश्विक संकटों का सामना करने के लिए एक नया और समग्र शासन ढांचा चाहिए, जो राष्ट्रीय संप्रभुता और वैश्विक सहयोग के बीच संतुलन बनाए। स्थानीय और वैश्विक प्रयासों को एक साथ जोड़कर और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर, हम एक स्थायी भविष्य के लिए समाधान सुनिश्चित कर सकते हैं।
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